सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन करें। - City plan of the Indus Valley Civilization

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना ही सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता थी। जालनुमा सड़कें व गालियाँ, सुनियोजित जल निकास प्रणाली एवं पक्की ईंटों का प्रयोग आदि कई विशेषताएँ सिंधु सभ्यता में देखने को मिलती हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस सभ्यता का सर्वप्रथम अवशेष हड़प्पा से ही प्राप्त हुआ था।
          सिन्धु घाटी सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता नगर तथा भवनों का योजनाबद्ध ढंग से निर्माण करना था। इस प्रकार का सुनियोजित नगर विन्यास विश्व की किसी भी प्राचीन सभ्यता में प्राप्त नहीं होता है। नगर नियोजन से सिन्धु निवासियों का श्रेष्ठ निर्माण ज्ञान अभिव्यक्त होता है।

नगर निर्माण योजना : - 


(1) नगर नियोजन - 

सिन्धु सभ्यता के प्रमुख नगर थे—मोहनजोदड़ो,  हड़प्पा, चन्हूदड़ो, कालीबंगा, लोथल, सुरकोतड़ा तथा बनावली। सिन्धु सभ्यता के नगर नदियों के किनारे स्थित थे। इनमें मोहनजोदड़ो और हड़प्पा, दो बड़े नगर थे। इनमें हड़प्पा नगर नष्ट हो गया है। मोहनजोदड़ो का क्षेत्रफल लगभग 1 वर्ग मील है। यह नगर दो भागों में विभाजित है। पश्चिमी खण्ड में गारे और कच्ची ईंटों से निर्मित एक चबूतरा है। सभी भवनों का निर्माण इसी भाग में किया गया है। इसके चारों ओर कच्ची ईंटों का परकोटा बनाया गया है, जिसमें मीनारें और बुर्ज हैं। चन्हूदड़ो में एक कारखाना पाया गया है। कालीबंगा में भी दो खण्ड पाए गए हैंएक उच्च वर्ग के लिए परकोटायुक्त और दूसरा जन-साधारण के लिए। यहाँ हवन कुण्ड का भी साक्ष्य मिला है। लेकिन यहाँ के मकान कच्ची ईंटों के बने हैं। यहाँ ईंटों के चबूतरे भी मिले हैं, जो सम्भवतः अन्नागार रहे होंगे। लोथल के पूर्वी खण्ड में पक्की ईंटों का तालाब जैसा घेरा मिला है, जिसे विद्वान् बन्दरगाह मानते है।

            सिन्धु सभ्यता में सड़कों का निर्माण अत्यन्त वैज्ञानिक ढंग से हुआ था। सड़कें सीधी रेखा में थीं और एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। इस प्रकार प्रत्येक नगर अनेक खण्डों में विभाजित हो जाता था। प्रमुख सड़कों से गलियाँ निकलती थीं, जो 1 से 2 मीटर तक चौड़ी होती थीं। मोहनजोदड़ो में एक 11 मीटर चौड़ी सड़क भी थी, जो सम्भवतः राजमार्ग रही होगी। नगर की सभी सड़कें इस राजमार्ग से मिलती थीं। सड़कें मुख्यतया कच्ची थीं। कच्ची होने के बावजूद साफ सफाई का पर्याप्त ध्यान रखा जाता था। सड़कों के किनारे छायादार पेड़ लगाए जाते थे।
             सड़कों के किनारे नालियाँ होती थीं, जो पक्की एवं ढकी होती थीं। प्रत्येक गली में एक मुख्य नाली होती थी, जो सड़क की नाली से मिलती थी। प्रत्येक मकान की नाली गली की मुख्य नाली से जुड़ी होती थी। इन नालियों के द्वारा गन्दा पानी नगर के बाहर पहुँचाया जाता था। इन नालियों में थोड़ी-थोड़ी दूर पर शोषक कूप भी थे, ताकि कूड़े से पानी का प्रवाह अवरुद्ध न हो।

(2) भवन-निर्माण–

सिन्धु सभ्यता में भवन-निर्माण का विशेष महत्त्व है। यहाँ के निवासी भवन निर्माण कला में दक्ष थे। इसकी पुष्टि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि से प्राप्त भग्नावशेषों से होती है। भवनों का निर्माण सुनियोजित ढंग से किया जाता था। सिन्धु सभ्यता के भवनों को निम्न तीन भागों में बाँट सकते हैं-

(i) साधारण भवन - साधारण लोगों के रहने के लिए सड़क के दोनों ओर मकान बनाए जाते थे। इनमें से कुछ मकान कच्चे व कुछ पक्के होते थे। इन मकानों का आकार आवश्यकतानुसार छोटा अथवा बड़ा होता था। खुदाई में कुछ भवन ऐसे मिले हैं जिनमें मात्र दो कमरे हैं, जबकि कुछ में अनेक कमरे। इन भवनों में वायु तथा प्रकाश का समुचित प्रबन्ध होता था। भवनों में नालियों का उत्तम प्रबन्ध था तथा नालियाँ ढकी रहती थीं। कालीबंगा में जल निकास प्रणाली का अभाव था। मकानों का निकास द्वार सड़कों के विपरीत दिशा में होता था। अपवादस्वरूप लोथल में निकास द्वार मुख्य सड़क की ओर है। ऐसा प्रदूषण तथा मुख्य सड़क के शोरगुल से बचाव के लिए होता था। मकान दो मंजिले तक होते थे। ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं। दीवारें ईंट की बनी होती थीं, ईंट की लम्बाई 28.57 सेमी से 29.84 सेमी, चौड़ाई 13.33 सेमी से 15.87 सेमी और मोटाई 6.98 सेमी होती थी। भवन निर्माण में गारे का प्रयोग होता था। शहतीर के रूप में लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। छतें नरकट की चटाई बनाकर बनाई जाती थीं तथा उस पर कच्ची मिट्टी का मोटा लेप चढ़ा दिया जाता था। बाढ़ से रक्षा के लिए कभी-कभी मकान ऊँचे-ऊँचे चबूतरों पर बनाए जाते थे। दीवारों पर प्लास्टर भी किया जाता था। प्रत्येक घर में आँगन, पाकशाला, स्नानागार, शौचालय और कुएँ की व्यवस्था होती थी।

(ii) सार्वजनिक एवं राजकीय - भवन–सिन्धु सभ्यता में साधारण भवनों के अतिरिक्त सार्वजनिक एवं राजकीय भवन भी थे। मोहनजोदडो में एक विशाल भवन के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो लगभग 70 मीटर लम्बा व 24 मीटर चौड़ा था। इस विशाल भवन में अनेक कमरे, भण्डारगृह और दो आँगन थे। मोहनजोदड़ो में एक गढ़ी थी, जिसका निर्माण कृत्रिम पहाड़ी पर किया गया था। इस गढ़ी में एक विशाल भवन था, जो 71 मीटर लम्बा व 71 मीटर चौड़ा था। इसमें एक विशाल कक्ष था, जिसकी छत 20 स्तम्भों पर टिकी हुई थी। फर्श पर अनेक स्थानों पर चौकियाँ बनी हुई थीं। सम्भवतः इस भवन का प्रयोग विचार-विमर्श के लिए होता होगा।

(iii) अन्नागार – हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में कुछ अन्य विशाल भवन मिले हैं, जिन्हें पुरातत्त्ववेत्ता अन्नागार मानते हैं। हड़प्पा में राजमार्ग के दोनों ओर ऊँचे चबूतरों पर छह-छह की दो पंक्तियों में 12 विशाल अन्नागार बने हुए थे। प्रत्येक अन्नागार की लम्बाई 18 मीटर व चौड़ाई 7 मीटर थी।

(iⅤ) विशाल स्नानागार- मोहनजोदड़ो की खुदाई में एक विशाल स्नानागार के अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो नगर के बीचोंबीच है। यह 180 फीट लम्बा और 108 फीट चौड़ा है। स्नानागार में चारों ओर बरामदे व कमरे हैं और आँगन के बीच में स्नानकुण्ड है। स्नानकुण्ड 39 फीट लम्बा व 23 फीट चौड़ा एवं 8 फीट गहरा है। इसमें अन्दर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्नानकुण्ड से गन्दे जल के निकास के लिए नालियाँ बनी हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि समय-समय पर स्नानागार की सफाई की जाती होगी। स्नानागार के निकट ही एक कुआँ है, जिससे स्नानकुण्ड में पानी भरा जाता होगा। कुछ इतिहासकारों का मत है कि स्नानागार में पानी गर्म करने की भी व्यवस्था थी।

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं  : - 
  • सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता में नगर की सड़कें एवं मकान सुनियोजित ढंग से बनाये जाते थे। मकान बनाने के लिए पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था।
  • सिंधु घाटी की ईंटें एक निश्चित अनुपात में बनाई जाती थीं। अधिकांशतः ईंटें आयताकार आकर की होती थीं। ईंट की लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई का अनुपात 4 : 2 : 1 था।
  • नगर को दो भागों में विभाजित किया गया था, एक भाग छोटा लेकिन ऊंचाई पर बना होता था तो नगर का दूसरा भाग कहीं अधिक बड़ा परन्तु नीचे बनाया गया था। ऊँचें भाग को दुर्ग और निचले भाग को निचला शहर का नाम दिया गया है। दुर्ग को कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनाया जाता था इसलिए यह ऊँचे होते थे।
  • दुर्ग को दीवार से घेरा गया था जिसका अर्थ है कि इसे निचले शहर से अलग किया गया था।
  • दुर्ग में खाद्य भण्डार गृह, महत्वपूर्ण कार्यशालाएँ, धार्मिक इमारतें तथा जन इमारतें थी। निचले भाग में लोग रहा करते थे।
  • हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशेषता इसकी जल निकास प्रणाली थी।
  • सड़कों तथा गलियों को ग्रिड पद्धति (जालनुमा) में बनाया गया था। सड़कें सीधी थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी।
  • ऐसा जान पड़ता है कि पहले नालियों के साथ गालियाँ बनाई गयीं और फिर उनके अगल-बगल मकानों का निर्माण किया गया।
  • नालियाँ ईंटों तथा पत्थर से ढकी होती थी। जिनके निर्माण में प्रमुखतः ईंटों और मोर्टार का प्रयोग किया जाता था पर कुछ जगह चुने और जिप्सम का प्रयोग भी मिलता है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की तरफ न खुलकर पीछे की तरफ खुलते थे। लेकिन लोथल में ऐसा नहीं मिलता है।
  • मकान में स्नानागार प्रमुखतः गली अथवा सड़क के नजदीक बनाया जाता था।
  • मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है जोकि 11.88 मीटर (39 फीट) लम्बा, 7.01 मीटर (23 फीट) चौड़ा और 2.43 मीटर (8 फीट) गहरा था। संभवतः इस स्नानागार का प्रयोग आनुष्ठानिक स्नान के लिए होता था।

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