पानीपत की लड़ाई – पानीपत के प्रथम, द्वितीय और तृतीय युद्ध के बारे में विस्तार से जानें!

ऐसा माना जाता है कि पानीपत महाभारत के समय पांच पांडव भाइयों द्वारा स्थापित 5 शहरों में से एक शहर था। इस शहर का नाम “पांडुप्रस्थ” था। यह भी माना जाता है कि महाभारत युद्ध के समय दुर्योधन ने पांडवों से जो 5 शहर मांगे थे उन शहरों में से एक शहर यह भी था। बाद में इस शहर का नाम पानीपत पड़ गया। इस लेख लेख में हम आपको पानीपत की लड़ाई (Panipat battles in Hindi) की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।


पानीपत की वर्तमान में स्थिति 

पानीपत भारत देश के हरियाणा राज्य के 1 जिले में स्थित एक महत्वपूर्ण गांव है। पानीपत “दिल्ली- चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या- 1″ पर स्थित एक गांव है। यह दिल्ली के बहुत नजदीक है। यह दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस लेख के माध्यम से हम आपको पानीपत के तीनों युद्धों की संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।

पानीपत की लड़ाई | Panipat Battles 

पानीपत की भूमि पर तीन प्रमुख लड़ाइयां लड़ी गई जिन्हें पानीपत का युद्ध कहा जाता है। इन युद्धों के कारण इतिहास में अनेक परिवर्तन हुए। उन्हें इतिहासकार कभी भी भुला नहीं सकते हैं। इस प्रकार पानीपत का भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। जब भी भारत की भूमि पर युद्धों की चर्चा होगी तो पानीपत के तीनो युद्धों को याद किया जाएगा। तीनों युद्धों का विवरण इस प्रकार है-

पानीपत का प्रथम युद्ध | 1st Panipat battle

भारत की भूमि पर अनेकों लड़ाइयां लड़ी गई। इसी प्रकार पानीपत की लड़ाई भी अनेकों लड़ाई में से प्रमुख लड़ाई थी। पानीपत की प्रथम लड़ाई ने भारतीय इतिहास को एक अलग दिशा की ओर ही मोड़ दिया। इस युद्ध के बाद भारत में मुगल वंश की नींव डली एवं भारत में मुगल वंश का शासन आरंभ हुआ।
  • पानीपत का प्रथम युद्ध “21 अप्रैल1526 ईस्वी” को हुआ था।
  • यह युद्ध दिल्ली के सुल्तान “इब्राहिम लोदी” एवं मुगल आक्रमणकारी शासक बाबर के बीच हुआ था।
  • इब्राहिम लोदी के पास लगभग 1 लाख सैनिक थे जबकि बाबर के पास लगभग 12,000 सैनिक थे।
  • इतिहासकारों के अनुसार बाबर की 20 से 24 सेना की टुकड़ियों के पास तोपों थी।
  • बाबर ने पानीपत की लड़ाई में “तुलगमा युद्ध नीति” एवं तोपों का प्रयोग किया।
  • तुलगमा युद्ध नीति में बाबर ने अपनी सेना को तीन भागों में विभाजित कर लिया। यह तीन भाग लेफ्ट, राइट व केंद्र थे। लेफ्ट राइट की सेना को बाबर ने आगे फॉरवर्ड में एवं रियर भागों में पूरी सेना को बांट दिया था जिसके कारण इब्राहिम लोदी की बड़ी सेना को बाबर की छोटी सेना ने चारों तरफ से घेर लिया था। यह युद्ध नीति बिल्कुल नई थी जिसके कारण इब्राहिम युद्ध हार गया।
  • इस युद्ध में बाबर ने तोपों, आग्नेय शास्त्रों, बारूद का प्रयोग किया था।
  • बाबर के पास युद्ध-विद्या का कौशल होने एवं तोपों का ज्यादा प्रयोग करना जिसके कारण बाबर ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की।
  • बाबर के साथ में उस्ताद अली एवं मुस्तफा दो महत्वपूर्ण निशानेबाज थे जिन्होंने इस युद्ध में एक निर्णायक की भूमिका निभाई थी।
  • इब्राहिम लोदी मध्यकाल के पहले ऐसे शासक थे, जो युद्ध स्थल में ही शहीद हो गए। उनके साथ ग्वालियर के राजा विक्रमजीत भी शहीद हो गए।
  • बाबर का युद्ध को जीतने का प्रमुख कारण तोपों का प्रयोग, युद्ध की सही रणनीति एवं प्रभावशाली होने के कारण यह युद्ध बाबर ने जीत लिया।
  • युद्ध इतिहास में तोपों के प्रयोग, आग्नेय शास्त्रों का प्रयोग एवं बारूदो के प्रयोग के रूप में याद किया जाता है।

पानीपत का द्वितीय युद्ध | 2nd Panipat battle

पानीपत का द्वितीय युद्ध भी भारत में मुगलों के साम्राज्य को मजबूत एवं स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पानीपत की लड़ाई के कारण अकबर की स्थिति भारत में और भी मजबूत हो गई थी एवं मुगल शासन का वर्चस्व इस युद्ध के बाद बढ़ता ही गया।
  • पानीपत का द्वितीय युद्ध “5 नवंबर 1556ईस्वी” को हुआ था।
  • यह युद्ध अकबर की सेना एवं उत्तर भारत के सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य के बीच में हुआ था।
  • उत्तर भारत में मुगल शासन के 350 साल के बाद किसी हिंदू शासक ने शासन किया था। इसलिए हेमू को सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य की उपाधि से नवाजा गया था।
  • कुछ इतिहासकारों ने इस युद्ध के बारे में यह बताया है कि, अकबर ने इस युद्ध में स्वयं भाग नहीं लिया था, बल्कि उसकी सेना ने भाग लिया था क्योंकि अकबर उस समय मात्र 13 वर्ष का था एवं बैरम खां ने अकबर से यह भी कहा था कि, यदि हम युद्ध हार जाएं तो आप काबुल की ओर भाग जाना।
  • पानीपत की लड़ाई में अकबर के सेनापति खान जमान एवं बैरम खान थे, जिन्होंने इस युद्ध में महत्वपूर्ण रणनीतिकार की भूमिका निभाई थी। उनकी नीतियों के कारण ही यह युद्ध अकबर जीत पाए थे।

पानीपत का तृतीय युद्ध | 3rd Panipat battle

इस समय मराठा साम्राज्य का उत्कर्ष चरम पर था एवं मराठों से सभी सम्राटों को खतरा उत्पन्न होने लगा था एवं आसपास के सभी सम्राट, मराठो से जलने लगे थे इसलिए सभी सम्राट यह चाहते थे कि, मराठो को सबक सिखाया जाए। जिसके कारण अफगान शासक रोहिल्ला और अवध के नवाब शुजा उद दौला ने अहमद अब्दाली को भारत आने का न्योता दिया एवं अपने साथ युद्ध लड़ने के लिए आमंत्रित किया। अहमद शाह अफगानिस्तान का रहने वाला था एवं यह दुर्रानी वंश का शासक था।

  • पानीपत का तृतीय युद्ध “14 जनवरी 1761 ईस्वी” को हुआ था।
  • यह युद्ध “अहमद शाह अब्दाली” व मराठों के बीच हुआ था, जिसमें मराठों की हार हुई थी।
  • इस युद्ध में मराठों के सेनापति सदाशिव राव भाऊ थे। सदाशिव राव राव भाऊ को सेनापति बनाने का मुख्य कारण यह था कि, उन्होंने हैदराबाद के निजाम शासकों की सेनाओं को हराया था एवं उस समय सबसे ताकतवर यह व्यक्ति थे।
  • इस युद्ध में भील शासक “इब्राहिम खां गर्दी” ने मराठों का सहयोग तन- मन -धन से दिया था।
  • दोआब के अफगान शासक “रोहिल्ला” और अवध के नवाब “शुजा उद दौला” ने अहमद शाह अब्दाली का भरपूर सहयोग किया था।
  • 1761 में मराठा साम्राज्य के पेशवा बालाजी बाजीराव थे। इन्होंने ही सदाशिव राव भाऊ को मराठों का सेनापति बनाया था। इस युद्ध में हार के सदमे के कारण बालाजी बाजीराव की मृत्यु हो गई थी।
  • बालाजी बाजीराव को नाना साहेब के उपनाम से भी जाना जाता है।
पानीपत का तृतीय युद्ध भारत के इतिहास का सबसे खराब युद्ध माना जाता है क्योंकि इस युद्ध में मराठा साम्राज्य के बहुत से व्यक्तियों ने बलिदान दिया है, जैसे- सदाशिवराव भाऊ, इब्राहिम गार्दी, विश्वासराव, शमशेर सिंह बहादुर, जनकोजी सिंधिया आदि। पानीपत की लड़ाई के बाद मराठा साम्राज्य का पतन हो गया था, क्योंकि इस युद्ध के बाद मराठा साम्राज्य को जन एवं धन की बहुत हानि हुई थी।

आशा करते हैं कि पानीपत की लड़ाई (Panipat battles in Hindi) विषय पर आधारित यह लेख आपके लिए काफी जानकारीपूर्ण साबित होगा। ऐसे ही GK के आर्टिकल को पढ़ने के लिए टेस्टबुक से जुड़े रहे।

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