प्लेटो के आदर्श राज्य की अवधारणा
प्लेटो के समय यूनानी समाज में अराजकता व्याप्त थी उसने उपस्थित बुराइयों तथा अराजक स्थिति का उपचार करने के लिए एक ही आदर्श राज्य की कल्पना की इस तरह उसने तत्कालीन यूनानी समाज को सही मार्ग दिखाने का प्रयत्न किया उसने बताया कि शासन का अधिकार ऐसे ज्ञानी दार्शनिकों को भी होना चाहिए जो निस्वार्थ होकर शासन कर सकें इस प्रकार व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले सारे कार्य आत्मा से प्रेरणा ग्रहण करते हैं उसी प्रकार राज्य के सभी कार्यों की उत्पत्ति उन्हें बनाने वाले मनुष्यों की आत्माओं से होती है प्लेटो के शब्दों में राज्य ओक वृक्ष या चट्टान से नहीं अपितु उस में निवास करने वाले व्यक्तियों के चरित्र से बनता है ।
प्लेटो का आदर्श राज्य सभी आने वाले समय और सभी स्थानों के लिए एक आदर्श का प्रस्तुतीकरण है। उसने आदर्श राज्य की कल्पना करते समय उसकी व्यवहारिकता की उपेक्षा की है। यद्यपि प्लेटों के विचारों में व्यावहारिकता की कमी है लेकिन हमें उस पृष्ठभूमि को नहीं भूलना चाहिए जिसने उसके मस्तिष्क में आदर्श राज्य की कल्पना जागृत की।
प्लेटो के आदर्श राज्य सम्बन्धी अवधारणा आदर्श राज्य की परिकल्पना के पूर्व किसी आदर्श राज्य की खोज में प्लेटों ने कई वर्षों तक इटली तथा यूनान आदि देशों की यात्रा की। कुछ विद्वानों के अनुसार वह भारत भी आया था, परन्तु अपने कल्पना के अनुरूप उसे कोई आदर्श राज्य नहीं मिला। विभिन्न महत्त्वपूर्ण देशों में अनवरत कई वर्षों तक यात्रा के बाद वह अपने देश वापस आ गया तथा अपने अनुभव के आधार पर उसने अपने प्रसिद्ध राजनीतिक ग्रन्थ 'रिपब्लिक' का प्रणयन किया। जिसमें उसे आदर्श राज्य के स्वरूप का सांगोपांग चित्रण किया है। एथेन्स के जन तान्त्रिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अराजकता तथा उस व्यवस्था की विफलता से क्षुब्ध होकर प्लेटो ने एक ऐसे आदर्श राज्य की परिकल्पना की जो जनतंत्र में व्याप्त समग्र बुराइयों से मुक्ति और न्याय पर आधारित हो जिसका संचालन दार्शनिक शासक करता है। उसने अपने आदर्श राज्य को परिकल्पना के अन्तर्गत न्याय सम्बन्धी अवधारणा को स्पष्ट किया और साथ ही दार्शनिक शासक एवं सैनिक वर्ग के लिए साम्यवादी व्यवस्था की रूपरेखा प्रस्तुत की। उसने राज्य में शिक्षा की कैसी व्यवस्था हो इसका भी चित्रण किया है। आदर्श राज्य का आधार स्तम्भ-आदर्श राज्य क्या है? प्लेटो ने इसका उत्तर आदर्श राज्य के निर्माण तत्त्वों द्वारा प्रदान किया है। आदर्श राज्य न्याय पर आधारित होता है। उसमें प्रत्येक व्यक्ति कार्यों को बिना किसी दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप किये हुए पूरा करते हैं। उनके मस्तिष्क को शिक्षा के द्वारा उत्तर किया जाता है। साम्यवाद द्वारा भौतिक प्रलोभनों से मुक्त शासक और सैनिक राज्य की उन्नति की चेष्टा में संलग्न रहते हैं। शासक विशेष योग्यता युक्त होने के कारण राज्य हितकारी कार्यों को अधिक भली प्रकार करते हैं प्लेटो के आदर्श राज्य के मुख्य आधारस्तम्भ चार हैं। इन चार स्तम्भों के अभाव में उसके भव्य भावना की आधारशिला ढह जायेगी। ये मुख्य आधार स्तम्भ निम्न हैं-(1) न्याय, (2) शिक्षा, (3) साम्यवाद, (4) दार्शनिक शासक प्लेटो के अनुसार न्याय, प्रत्येक व्यक्ति द्वारा समाज के सामने निश्चित स्थान पर रहकर अपने कर्तव्य का पालन करता है। इसलिए न्याय पर आधारित आदर्श राज्य की स्थापना उसने समाज को तीन वर्गों में विभाजित कर लिया। आदर्श राज्य के वर्ग विभाजन - प्लेटो ने आदर्श राज्य में तीन वर्गों की स्थापना की है और उनके कर्तव्यों का विभाजन किया है। उसकी वर्ण व्यवस्था निम्न है:
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(1 उत्पादक वर्ग-प्लेटो के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में सबसे नीचे उत्पादक वर्ग होता है। इस वर्ग के अन्तर्गत कृषक, जुलाहे, लुहार, बढ़ई, शिल्पकार आदि लोग आते हैं। जिनके कार्यों द्वारा समाज के सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति हुई है। इन व्यक्तियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का क्रय-विक्रय व्यापारियों द्वारा किया जाता है और वह भी उत्पादक वर्ग के अन्तर्गत आ जाते हैं। इस प्रकार प्लेटो के अनुसार उत्पादक वर्ग आदर्श राज्य का प्रथम आधार स्तम्भ है। (ii) सैनिक वर्ग - प्लेटो के अनुसार आवश्यकताओं में वृद्धि के साथ ही साधनों को समस्या भी उत्पन्न होती है। कालान्तर में इन आवश्यकताओं को पूर्ति के लिए राज्य को अपने पड़ोसी राज्यों के साथ संघर्ष करना पड़ता है इस प्रकार युद्धों का प्रारम्भ होता है। युद्ध के कार्य में संगठन व्यक्तियों को एलेटो "सैनिक वर्ग के अन्तर्गत रखता है। इस वर्ग को प्लेटो अपने आदर्श राज्य का दूसरा आधारस्तम्भ मानता है।
2) शासक वर्ग- सामाजिक वर्गीकरण के शीर्ष पर प्लेटो ने शासक वर्ग को रखा है उत्पादक तथा सैनिक वर्गों को एकता तथा व्यवस्था के सूत्र में बांधने के लिए शासक वर्ग सम्मिलित करता है, जिसमें शासन करने की कुशलता हो। उसने आदर्श राज्य के लिए ऐसे शासकों की व्यवस्था की है, जो दार्शनिक है। ऐसे 'दार्शनिक शासक प्लेटो के आदर्श राज्य की तीसरे आधार स्तम्भ के रूप में कार्य करते हैं। प्लेटो का आदर्श राज्य- राज्य की वर्ण व्यवस्था का आधार आध्यात्मिक है। उसके अनुसार आत्मा की तीन प्रवृत्तियाँ होती हैं: कृष्णा, शौर्य और विवेका उनका वर्गीकरण इन तीनों प्रवृत्तियों का ही प्रतिनिधित्त्व सैनिक वर्ग द्वारा और विवेक का प्रतिनिधित्व, शासक वर्ग द्वारा होता है। उसके अनुसार उत्पादक वर्ग के लिए औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता नहीं है, परन्त सैनिक तथा सैनिक वर्ग के लिए उसने विशेष प्रकार की शिक्षा व्यवस्था की है। उसकी शिक्षा का उद्देश्य ठनमें ऐसे गुणों का विकास करना है, जिनके द्वारा वह कर्तव्यों को कुशलता के साथ सम्पादित कर सके। शासक तथा सैनिक वर्ग की पारिवारिक तथा आर्थिक चिन्ताओं से मुक्त करने के लिए प्लेटो ने सम्पत्ति तया पत्तियों के साम्यवाद की व्यवस्था की है। इसके अनुसार इन दोनों वर्गों की आवश्यकताओं की पूर्ति का उत्तरदायित्त्व राज्य का होगा। इन ब्गों का कोई स्थायी परिवार नहीं होगा। केवल सन्तानोत्पति के लिये होना स्त्रियों से सम्बन्ध रहेगा। इनके द्वारा उत्पन्न सन्तानों के लालन-पालन का दायित्व राज्य का होगा। इस प्रकार सभी चिन्ताओं से मुक्त रहकर शासन तथा सैनिक वर्ग कुशलतापूर्वक कार्य करते हुए आदर्श राज्य की स्थापना में सहयोग देंगे। शिक्षा-व्यवस्था- प्लेटो के अनुसार राज्य को आदर्श रूप शिक्षा के द्वारा ही दिया जा सकता है। इसीलिए उन्होंने शिक्षा पद्धति का अधिक महत्त्व दिया है। हम यह कह चुके हैं कि उसकी शिक्षा व्यवस्था केवल शासक एवं सैनिक वर्ग के लिए ही है, क्योंकि उत्पादक वर्ग के लिए यह शिक्षा को महत्त्वपूर्ण नहीं मानता। उसके अनुसार शिक्षा का ठद्देश्य व्यक्ति का शारीरिक तथा मानसिक दोनों के विकास की ओर ध्यान देना है। प्रारम्भिक शिक्षा के अनुसार 10 वर्ष की आयु तक चलेगी। 18 वर्ष की आयु तक नागरिकों को बौद्धिक तथा व्यायाम आदि की शिक्षा दी जायेगी। 8 वर्ष से 20 वर्ष की आयु तक संगीत तथा आध्यात्मिक शिक्षा दी जाएगी 20 से 30 वर्ष तक माध्यमिक शिक्षा चलती थी। यह शिक्षा नागरिकों के केवल उस वर्ग के लिए थी, जिसे आगे चलकर अभिभावक या शासक बनना से 35 थे। इस अवधि में गणितीय, तर्कशास्त्र, खगोल शास्त्र आदि की शिक्षा दी गयी थी। 31 वर्ष की अवधि की शिक्षा का तीसरा चरण था, जब दार्शनिक शासकों का निर्माण करने के लिए शुद्ध आध्यात्मिक शिक्षा दी जाती थी। परन्तु इसके पश्चात् भी शिक्षा का अन्त नहीं होता था। प्लेटो के अनुसार अभिभावकों की शिक्षा जीवन-पर्यन्त चला करती थी।
राज्य और व्यक्ति का संबंध
प्लेटो व्यक्ति और राज्य में जीव का संबंध मानता है। उसका विश्वास है कि जो गुण और विशेषताएं अल्प मात्रा में व्यक्ति में पाई जाती हैं वहीं गुण विशाल रूप में राज्य में पाई जाती है। राज्य मूलतः मनुष्य की आत्मा का बाहरी स्वरूप है अर्थात् आत्मा (चेतना) अपने पूर्ण रूप से जब बाहर प्रकट होती है तो वह राज्य का स्वरूप धारण कर लेती है। व्यक्ति की संस्थाएं उसके विचार का संस्थागत स्वरूप है। जैसे राज्य के कानून व्यक्ति के विचारों से उत्पन्न होते हैं, न्याय उनके विचारों से ही अद्भुत हैं। यह विचार ही विधि-संहिता और न्यायालयों के रूप में मूर्तिमान होते हैं। प्लेटो ने मनुष्य की आत्मा में तीन तत्व बताएं हैं विवेक(ज्ञान), उत्साह (शौर्य) और सुधा (तृष्णा) और इनके कार्यो तथा विशेषताओं के आधार पर इन्हें राज्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया।
आदर्श राज्य का निर्माण करने वाले तीन तत्व
1. आर्थिक तत्व - इसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य काम तत्वों से संबंध रखने वाले भोजन वस्त्र आवास आदि की आवश्यकताएं एकांकी रूप से पूरी नहीं कर सकता यह अनेक व्यक्तियों के सहयोग से तभी पूर्ण हो सकती है जब उन्हें पूरा करने के लिए समाज में अन्न उत्पन्न करने वाले किसानों मकान बनाने वाले स्त्रियों कपड़ा बुनने वाले जुलाहा आदि की विशेष आर्थिक श्रेणियां बन जाए समाज के लिए इस प्रकार का श्रम विभाजन बड़ा महत्वपूर्ण है समाज के विभिन्न भागों में कार्यों का बंटवारा हो जाने से प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष कार्य को करता है यही विशेष कार्य का सिद्धांत कहलाता है । What is the ideal state of plato
2. सैनिक तत्व - आत्मा के गुणों में उत्साह या शौर्य के साथ साम्य रखता है मनुष्य केवल भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति से संतोष नहीं होता इसमें अपने को सुसंस्कृत और परिमार्जित बनाने की कुछ आकांक्षाएं होती है उन्हें पूरा करने के लिए अधिक जनसंख्या और प्रदेश की आवश्यकता होती है यह प्रदेश युद्ध द्वारा प्राप्त हो सकता है इसलिए राज्य को प्रणाली को उपलब्ध कराना तथा उसे अपने अधिकार में बनाए रखना होता है राज्य की रक्षा के लिए वीर सैनिकों की आवश्यकता होती है विशेषकरण के नियम के अनुसार इस कार्य को करने वाले योद्धाओं का एक विशेष वर्ग होना चाहिए। What is the ideal state of plato
3. दार्शनिक तत्व - इसका सम्बन्ध आत्मा के विवेक से है प्लेटो के अनुसार सैनिक राज्य का रक्षक होता है संरक्षक ज्ञान और विवेक द्वारा शत्रु और मित्र भेद करके उनके साथ यथा योग्य व्यवहार करता है इसलिए राज्य के रक्षक में विभिन्न होना चाहिए सैनिक में यह गुण पाया जाता है । यह शासक वर्ग से संबंधित है। राज निर्माण का तीसरा आधार दार्शनिक तत्व है जिनका संबंध आत्मा के विवेक बुद्धि से है। प्लेटो का मानना है कि राज्य के रक्षकों में विवेक का गुण विद्यमान होना अनिवार्य है उसके अनुसार सैनिक योद्धा में सामान्यतः विवेक का यह गुण मिलता है किंतु विशेष रूप से यह पूर्ण संरक्षक या शासक में ही पाया जाता है। यह संरक्षक दो प्रकार के होते हैं- सैनिक संरक्षक तथा दार्शनिक संरक्षक।
प्लेटो का कहना है कि राज्य तभी आदर्श स्वरूप ग्रहण कर सकता है, जब राज्य का शासन ज्ञानी एवं निः स्वार्थ दार्शनिक शासकों द्वारा हो। इसी तत्व को ध्यान में रखकर वह राज्य के उच्च शिखर पर दार्शनिक को नियुक्त करता है।
आदर्श राज्य की आलोचना
1. आदर्श राज्य एक स्वप्निल संसार है – प्लेटो के आदर्श राज्य की अव्यावहारिकता को देखते हुए उसे एक स्वप्निल संसार कह कर पुकारा गया है। उसे बादलों में स्थित नगर की संज्ञा दी गई है। इसे संध्याकालीन तंतु कहा गया है जो क्षण भर के लिए दृष्टिगोचर होकर रात्रि की नीरवता में विलुप्त हो जाता है।
2. स्वतंत्रता का निषेध – प्लेटो का आदर्श राज्य व्यक्तियों को आवश्यक स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता है। इतना नियंत्रणकारी है कि इसमें व्यक्तियों की सभी प्रवृत्तियों का विकास संभव नहीं है। प्लेटो का आदर्श राज्य एक सर्वाधिकारवादी राज्य है और वह अपने स्वभाव से ही मानवीय स्वतंत्रता के हित में नहीं हो सकता है।
3. उत्पादक वर्ग की उपेक्षा – प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना का एक प्रमुख आधार यह है कि इसमें उत्पादक वर्ग की उपेक्षा की गई है। वह अन्य दोनों वर्गों के समान इसके लिए न तो विशेष शिक्षा की व्यवस्था करता है और न ही सामाजिक ढांचे में उनको महत्वपूर्ण स्थिति प्रदान करता है।
4. शासक वर्ग की निरंकुश सत्ता – प्लेटो के आदर्श राज्य में कानूनों और नियमों का पूर्ण अभाव है और इसमें दार्शनिकों को निरंकुश सत्ता सौंप दी गई है, जिसे किसी भी प्रकार उचित नहीं कहा जा सकता। इन व्यक्तियों को शिक्षा द्वारा चाहे कितना ही विवेकशील और वीतरागो क्यों न बना दिया गया हो, अनियंत्रित शक्ति पा जाने पर मानवीय स्वभाव के अनुसार इसमें दोष आ जाना स्वाभाविक है।
5. कानून की उपेक्षा – आदर्श राज्य में कानून को कोई स्थान ना देकर भी प्लेटो ने बड़ी भूल की है। आगे चलकर लाज में कानून की अनिवार्यता को उसने स्वयं स्वीकार किया है। कानून की संपूर्ण उपेक्षा के कारण ही प्लेटो के आदर्श राज्य की अत्यंत कठोर आलोचना उसके काल से लेकर अब तक होती चली आई है।
6. व्यक्ति और राज्य की समानता को अत्यधिक महत्व- अपने आदर्श राज्य में प्लेटो ने व्यक्ति एवं राज्य में जिस बड़ी मात्रा में समानता के दर्शन किए हैं, उस मात्रा में व्यक्ति एवं राज्य में समानता वास्तव में होती नहीं है। इसी समानता को तथ्य मानकर प्लेटो ने मानव प्रकृति के तीन तत्वों विवेक, उत्साह तथा क्षुधा के आधार पर राजनीतिक समुदाय का निर्माण करने वाले लोगों को बड़ी कठोरता के साथ तीन भागों में बांट दिया है।
इन्हें भी देखें
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- बिहार में चंपारण आंदोलन का विवरण प्रस्तुत करें.......Click Here
- मात्रात्मक भूगोल का सविस्तार वर्णन कीजिए.......Click Here
- ज्वार भाटा की उत्पत्ति के सिद्धांतों की विवेचना कीजिए......Click Here
- व्यक्तित्व की परिभाषा दें ? व्यक्तित्व के जैविक तथा सामाजिक निर्धारकों की व्याख्या करें |........Click Here
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