मुगल इतिवृत्तों में तीन सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं-
- अकबरनामा ,
- बादशाहनामा तथा
- आलमगीरनामा ।
इनसे मुगल साम्राज्य के तीन शक्तिशाली बादशाहों -अकबर, शाहजहाँ और औरंगजेब — के शासनकाल की प्रमुख घटनाओं एवं नीतियों पर प्रकाश पड़ता है । इन इतिवृत्तों का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है ।
अकबरनामा - इसके लेखक अबुल फजल थे । अबुल फजल पर कट्टरपंथियों की नीतियों की प्रतिक्रिया हुई । उसने उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया । अबुल फजल अरबी , फारसी भाषाओं यूनानी दर्शन एवं सूफीवाद का अच्छा ज्ञाता था । साथ ही , उसने धार्मिक वाद - विवादों में निरंतर भाग लिया जिससे उसमें सहनशीलता और उदारता का विकास हुआ । अकबर अबुल फजल के इन गुणों से अत्यधिक प्रभावित था । बादशाह ने अपने “ सलाहकार और अपनी नीतियों के प्रवक्ता के रूप में अबुल फजल को अन्य लोगों से अधिक उपयुक्त पाया । अतः , अकबर ने 1589 में अबुल फजल को इतिवृत्त लिखने का दायित्व सौंपा । यह इतिवृत्त अकबरनामा के नाम से विख्यात हुआ ।
' अकबरनामा ' तीन खंडों ( जिल्दों ) में विभक्त है । तीनों खंडों का सम्मिलित नाम अकबरनामा है । सभी स्रोतों से प्रामाणिक विवरण एवं दस्तावेज प्राप्त कर , उनका गहन अध्ययन कर , अबुल फजल ने इस ग्रंथ की रचना की ।
' अकबरनामा ' में राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन तो किया साथ ही साम्राज्य के भौगोलिक , सामाजिक , प्रशासनिक और सांस्कृतिक पक्षों का विवरण भी नए रूप में किया गया है । ग्रंथ की भाषा अलंकृत है तथा इसमें लय और कथन - शैली को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । लेखक ने इस ग्रंथ के द्वारा अकबर के जीवन के रूहानी पहलू को उजागर करने , उसके ' सुलह - ए - कुल ' की नीति को लोगों तक पहुँचाने तथा पादशाह की महानता का प्रभाव जमाने का प्रयास किया है । अकबर अबुल फजल की नजर में एक पादशाह से कहीं अधिक महान था , वह इंसान - ए कामिल था , उसका दर्जा आम इंसान से ऊपर था ।
बादशाहनामा - अकबर के समान शाहजहाँ ने भी अपने काल का सरकारी इतिहास लिखवाया । इसे ' अकबरनामा ' के नमूने पर तैयार किया गया । इतिहास लिखने के लिए अब्दुल हमीद लाहौरी को नियुक्त किया गया । वह तहरीर लिखने में विख्यात था । उसे पटना से बुला कर यह कार्य सौंपा गया । लाहौरी अबुल फजल का शिष्य था । अकबरनामा ' के समान बादशाहनामा भी तीन जिल्दों में है । प्रत्येक खंड में दस चंद्र वर्षों का विवरण दिया गया है पहले दो खंडों में शाहजहाँ के शासनकाल के बीस वर्षों ( 1627-47 ) तक का विवरण दिया गया है । इसका आरंभ तैमूर के शासनकाल से किया गया है । इसमें “ शाहजादों , उमरा , विद्वानों , सूफियों , हकीमों और शायरों ” के विषय में भी लिखा गया है । इनसे शाहजहाँ के राज्यकाल के सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक इतिहास पर भी प्रकाश पड़ता है । लाहौरी द्वारा लिखित ग्रंथ में बादशाह के वजीर सादुल्लाह खाँ ने बाद में कुछ सुधार किया । अस्वस्थता के कारण लाहौरी ' बादशाहनामा ' का तीसरा खंड स्वयं नहीं लिख पाया । इसे बाद में मोहम्मद वारिस पूरा किया । वारिस लाहौरी का सहायक था । उसने पादशाहनामा के रूप में शाहजहाँ के शासन के इक्कीसवें वर्ष से तीसवें वर्ष ( 1648-1657 ) तक का इतिहास लिखा । इसी अवधि में शाहजहाँ के शासन में अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण था उसके पुत्रों में उत्तराधिकार का युद्ध । ' बादशाहनामा ' एक बहुमूल्य कृति है ।
आलमगीरनामा - औरंगजेब ने भी अपना सरकारी इतिहास लिखवाया । इतिहास - लेखन का कार्य काजिम शीराजी को सौंपा गया । उसने औरंगजेब के शासन के प्रथम दस वर्षों का इतिहास लिखा जो आलमगीरनामा ( आलमगीर औरंगजेब की उपाधि थी ) के नाम से विख्यात हुई । लेखक ने इसमें इस अवधि की सभी महत्त्वपूर्ण घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख किया है ।
इतिहास लिखने के लिए अबुल फजल के समान शीराजी को भी सभी सरकारी दस्तावेज उपलब्ध करवाए गए । उसे नई छानबीन करने का भी आदेश दिया गया । आवश्यकतानुसार उसे बादशाह औरंगजेब से सलाह - मशविरा करने की आजादी प्रदान की गई । ' आलमगीरनामा ' में शीराजी ने मुक्त कंठ से औरंगजेब की प्रशंसा की है । इसके विपरीत , उसने औरंगजेब के भाईयों और स्वयं शाहजहाँ की आलोचना की है । शीराजी ने उमरा वर्ग की आलोचना नहीं की है ; यहाँ तक कि जिन अमीरों ने औरंगजेब का विरोध किया था , उनकी भी प्रशंसा उसने की है । स्पष्टतः , दरबार से जुड़े होने की वजह से शीराजी उमरा को नाखुश करना नहीं चाहता था । शीराजी ने कुछ अप्रिय प्रसंगों का उल्लेख भी किया है , जैसे मूल्य वृद्धि , कृषि की गिरती अवस्था इत्यादि । इससे नाराज होकर औरंगजेब ने इतिहास - लेखन पर पाबंदी लगा दी , तथापि औरंगजेब के शासनकाल से संबद्ध अनेक ग्रंथ लिखे गए । शीराजी के नमूना पर हातिम खाँ ने भी ' आलमगीरनामा ' लिखा । इसमें भी औरंगजेब के शुरू के दस सालों की घटनाओं का वर्णन है ।
Post a Comment