भारत में फिल्मों की सेंसरशिप - Censorship of films in India

चर्चा में क्यों?
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक [Cinematograph (Amendment) Bill], 2021 के अपने मसौदे पर सार्वजनिक टिप्पणी मांगी है, यह केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (Central Board of Film Certification) पर अपनी "संशोधन शक्तियों" को वापस लाने का प्रस्ताव करता है।
  • नया विधेयक "बदले हुए समय के अनुरूप प्रदर्शन के लिये फिल्मों को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बना देगा तथा पायरेसी के खतरे को भी रोकेगा"।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:
  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने नवंबर 2000 में कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा था, जिसने "बोर्ड द्वारा पहले से प्रमाणित फिल्मों के संबंध में केंद्र की पुनरीक्षण शक्तियों" को रद्द कर दिया था।
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि विधानमंडल कुछ मामलों में उचित कानून बनाकर न्यायिक या कार्यकारी निर्णय को खारिज या रद्द कर सकता है।
मसौदा सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2021 का प्रावधान:
  • पुनरीक्षण अधिकार प्रदान करना: सरकार सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5बी(1) के उल्लंघन के कारण शिकायतों की प्राप्ति के बाद पहले से प्रमाणित फिल्म के संबंध में प्रमाणन बोर्ड को "पुन: परीक्षण (Re-Examination)" का आदेश दे सकती है।
  • धारा 5बी(1) फिल्मों को प्रमाणित करने के मार्गदर्शक सिद्धांतों से संबंधित है। इसे संविधान के अनुच्छेद 19(2) से लिया गया है और गैर-परक्राम्य है।
  • मौजूदा सिनेमैटोग्राफ अधिनियम (Cinematograph Act), 1952 की धारा 6 के तहत केंद्र को पहले से ही किसी फिल्म के प्रमाणन के संबंध में कार्यवाही के रिकॉर्ड की मांग करने और उस पर कोई आदेश पारित करने का अधिकार है।
  • यदि आवश्यक हो तो  केंद्र सरकार बोर्ड के निर्णय को उलटने की शक्ति रखती है।
  • मौजूदा UA श्रेणी का उप-विभाजन: फिल्मों के प्रमाणन से संबंधित प्रावधान "अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी (U/A)" श्रेणी में संशोधन का प्रस्ताव है ताकि मौजूदा UA श्रेणी को U/A 7+, U/A 13+ और U/A 16+ जैसी आयु-आधारित श्रेणियों में उप-विभाजित किया जा सके।
  • फिल्म पाइरेसी: ज़्यादातर मामलों में सिनेमा हॉल में अवैध दोहराव पाइरेसी का मूल बिंदु है। वर्तमान में सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 में फिल्म पायरेसी को रोकने के लिये कोई सक्षम प्रावधान नहीं है। मसौदा विधेयक धारा 6AA को सम्मिलित करने का प्रस्ताव करता है जो अनधिकृत रिकॉर्डिंग को प्रतिबंधित करता है।
  • पायरेसी के लिये सज़ा: मसौदा कानून की धारा 6AA पायरेसी को दंडनीय अपराध बनाती है।
  • तीन वर्ष तक के काFरावास की सज़ा और जुर्माने के साथ जो 3 लाख रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन यह ऑडिटेड सकल उत्पादन लागत का 5% या दोनों के साथ हो सकता है।
  • वर्ष 2013 की न्यायमूर्ति मुकुल मुद्गल समिति (Justice Mukul Mudgal Committee) और वर्ष 2016 की श्याम बेनेगल समिति (Shyam Benegal Committee) की सिफारिशों पर भी कानून का मसौदा तैयार करते समय विचार किया गया था।


केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC):
  • यह सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है, जो सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 के प्रावधानों के तहत फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन को नियंत्रित करता है।
  • बोर्ड में गैर-आधिकारिक सदस्य और एक अध्यक्ष (जिनमें से सभी केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते हैं) होता है और इसका मुख्यालय मुंबई में है।
  • केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा प्रमाणित होने के बाद ही फिल्मों को भारत में (सिनेमा हॉल, टीवी चैनलों पर) सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जा सकता है।
  • वर्तमान में फिल्मों को 4 श्रेणियों के तहत प्रमाणित किया जाता है: U, U/A, A & S।
    - अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी (U)।
    - अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी लेकिन सावधानी के साथ 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये माता-पिता के विवेक की आवश्यकता (U/A)।
    - वयस्कों के लिये प्रतिबंधित (A)।
    - व्यक्तियों के किसी विशेष वर्ग के लिए प्रतिबंधित (S)।
सेंसरशिप के प्रावधान:
  • संविधान का अनुच्छेद 19(2): इसके आधार पर राज्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार रखता है। युक्तियुक्त निर्बंधनों की घोषणा करता है-
    - भारत की सुरक्षा व संप्रभुता
    - मानहानि
    - विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
    - सार्वजनिक व्यवस्था
    - शिष्टाचार या सदाचार
    - न्यायालय की अवमानना
  • सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 भी अनुच्छेद 19 (2) के तहत बताए गए समान प्रावधानों का प्रावधान करता है।

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