महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि देशभर में बच्चों की सुरक्षा के लिए बाल संरक्षण योजना के तहत 2009-10 में केवल 60 करोड़ रुपये दिए गए थे.
संसद ने 28 जुलाई 2021 को किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को पारित किया. इसमें बच्चों की देखभाल और गोद लेने से जुड़े मामलों में जिलाधिकारियों और अपर जिलाधिकारियों की भूमिका बढ़ाने का प्रविधान है. इस विधेयक को महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में पेश किया.
महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि यह विधेयक बच्चों के हितों की रक्षा के लिए लाया गया है. आगामी पीढ़ी की जरूरतों को ध्यान में रखकर इसे तैयार किया गया है. लोकसभा से यह विधेयक मार्च, 2021 में पारित हो चुका है. इसके जरिये किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन किया गया है.
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि संशोधन विधेयक में बच्चों से जुड़े मामलों का तेजी से निस्तारण सुनिश्चित करने और जवाबदेही बढ़ाने के लिए जिला मजिस्ट्रेट व अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को ज्यादा शक्तियां देकर सशक्त बनाया गया है.
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक 2021 – प्रमुख बिंदु
महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा:
- अधिनियम देश भर में आश्रय गृहों में कमजोर बच्चों की भलाई के लिए जिम्मेदारी लेने के लिए जिला मजिस्ट्रेटों या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेटों को जिम्मेदारी सौंपने पर जोर देता है।
- जिला मजिस्ट्रेटों को अब किशोर न्याय अधिनियम की धारा 61 के तहत गोद लेने के आदेश पर हस्ताक्षर करने का अधिकार दिया गया है, जिससे गोद लेने की प्रक्रिया तेज और नियमों के अनुरूप हो गई है।
- अधिनियम अब सभी बाल देखभाल संस्थानों को जिला मजिस्ट्रेट की सिफारिशों के अनुरूप पंजीकृत करने के लिए भी कहता है।
- अधिनियम डीएम को बाल कल्याण समितियों, जिला बाल संरक्षण इकाइयों, विशेष किशोर पुलिस इकाइयों और किशोर न्याय बोर्डों के कामकाज की निगरानी और मूल्यांकन करने की जिम्मेदारी भी सौंपता है।
- अधिनियम ने सीडब्ल्यूसी सदस्यों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानकों को फिर से परिभाषित किया है। इसके अलावा, अधिनियम के संशोधित प्रावधानों ने ईमानदारी और अपेक्षित क्षमता वाले लोगों की नियुक्ति सुनिश्चित करने के लिए सीडब्ल्यूसी सदस्यों की अयोग्यता के मानदंड पेश किए हैं।
- वर्तमान में, अधिनियम तीन श्रेणियों के अपराधों की रूपरेखा तैयार करता है – छोटे, गंभीर और जघन्य। संशोधन में कहा गया है कि अधिकतम 7 साल से अधिक कारावास की सजा वाले अपराध, लेकिन न्यूनतम सजा या 7 साल से कम की न्यूनतम सजा का प्रावधान नहीं है, उन्हें अधिनियम के तहत एक गंभीर अपराध माना जाएगा।
बच्चों की सुरक्षा के लिए बाल संरक्षण योजना
महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि देशभर में बच्चों की सुरक्षा के लिए बाल संरक्षण योजना के तहत 2009-10 में केवल 60 करोड़ रुपये दिए गए थे. नरेंद्र मोदी सरकार बच्चों के हितों के लिए प्रतिबद्ध है. साल 2020-21 में बच्चों की सुरक्षा के मद में 1,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
सात वर्ष तक की जेल की सजा
विधेयक में तय कानून के मुताबिक, अगर कोई किशोर गंभीर अपराध का आरोपी है तो किशोर न्याय बोर्ड उस बच्चे की छानबीन करेगा. गंभीर अपराध यानी ऐसे अपराध जिनके लिए तीन से सात वर्ष तक की जेल की सजा दी जाती है. बिल में यह जोड़ा गया है कि गंभीर अपराधों में ऐसे अपराध भी शामिल होंगे जिनके लिए सात वर्ष से अधिक की अधिकतम सजा है, और न्यूनतम सजा नहीं तय की गई है, या सात वर्ष से कम की सजा है.
अभी तक एक्ट में प्रावधान है कि जिस अपराध के लिए तीन से सात वर्ष की जेल की सजा है, वह संज्ञेय (जिसमें वॉरंट के बिना गिरफ्तारी की अनुमति होती है) और गैर जमानती होगा. बिल इसमें संशोधन करता है और प्रावधान करता है कि ऐसे अपराध गैर संज्ञेय होंगे.
हर जिले में एक या एक से अधिक सीडब्ल्यूसी
एक्ट में प्रावधान है कि देखरेख एवं संरक्षण की जरूरत वाले बच्चों के हित के लिए राज्य हर जिले में एक या एक से अधिक सीडब्ल्यूसी बनाएंगे. एक्ट सीडब्ल्यूसी के सदस्यों को नियुक्त करने के लिए कुछ मानदंड भी बनाता है.
गोद लेने के आदेश जारी
संशोधन में अधिनियम की धारा 61 के तहत जिलाधिकारियों द्वारा गोद लेने के आदेश जारी करना शामिल है ताकि मामलों का त्वरित निस्तारण और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके. अधिनियम के तहत जिलाधिकारियों को इसका सुचारू कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के साथ-साथ संकट की स्थिति में बच्चों के पक्ष में समन्वित प्रयासों को सुनिश्चित करने के लिए और अधिक अधिकार दिए गए हैं.
नर्सिंग होम में बच्चों की बिक्री का मामला
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि विगत में पश्चिम बंगाल में नर्सिंग होम में बच्चों की बिक्री का मामला सामने आया था. बच्चों को गोद लिए जाने की प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें 60 दिनों का समय लगना चाहिए. लेकिन, काफी अधिक वक्त लग रहा है. समय से कागजी कार्रवाई पूरा नहीं होने से बच्चों के हित प्रभावित हो रहे हैं. बच्चों के गोद लिए जाने से संबंधित लगभग 1,000 मामले विभिन्न अदालतों में लंबित हैं.
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