सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए उपाय सुझाएँ - Promote Sustainable Development

बहुत से विद्वानों ने इंदिरा गांधी नहर परियोजना की पारिस्थितिकीय पोषणता पर प्रश्न उठाए हैं । पिछले चार दशक में , जिस तरह से इस क्षेत्र में विकास हुआ है और इससे जिस तरह भौतिक पर्यावरण का निम्नीकरण हुआ है ने विद्वानों के इस दृष्टिकोण को काफ़ी हद तक सही ठहराया भी । यह एक मान्य तथ्य है कि इस कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए मुख्य रूप से पारिस्थितिकीय सतत पोषणता पर बल देना होगा । इसलिए , इस कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले प्रस्तावित सात उपायों में से पाँच उपाय पारिस्थतिकीय संतुलन पुन : स्थापित करने पर बल देते हैं । 


( i ) पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है जल प्रबंधन नीति का कठोरता से कार्यान्वयन करना । इस नहर परियोजना के चरण -1 में कमान क्षेत्र में फ़सल रक्षण सिंचाई और चरण -2 में फ़सल उगाने और चरागाह विकास के लिए विस्तारित सिंचाई का प्रावधान है ।

 ( ii ) इस क्षेत्र के शस्य प्रतिरूप में सामान्यतः जल सघन फ़सलों को नहीं बोया जाना चाहिए । इसका पालन करते हुए किसानों का बागाती कृषि के अंतर्गत खट्टे फलों की खेती करनी चाहिए ।

( iii ) कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम जैसे नालों को पक्का करना , भूमि विकास तथा समतलन और वारबंदी ( ओसरा ) पद्धति ( निकास के कमान क्षेत्र में नहर समान वितरण ) प्रभावी रूप से कार्यान्वित की जाए ताकि बहते जल की क्षति मार्ग में कम हो सके । 

( iv ) इस प्रकार जलाक्रांत एवं लवण से प्रभावित भूमि का पुनरूद्धार किया जाएगा । 

( v ) वनीकरण , वृक्षों का रक्षण मेखला ( shelterbelt ) का निर्माण और चरागाह विकास । इस क्षेत्र , विशेषकर चरण -2 के भंगुर पर्यावरण , में पारितंत्र - विकास ( eco development ) के लिए अति आवश्यक है । 

(vi ) इस प्रदेश में सामाजिक सतत पोषणता का लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है यदि निर्धन आर्थिक स्थिति वाले भूआवंटियों को कृषि के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्तीय और संस्थागत सहायता उपलब्ध करवाई जाए । 

( vii ) मात्र कृषि और पशुपालन के विकास से इस क्षेत्रों में आर्थिक सतत पोषणीय विकास की अवधारणा को साकार नहीं किया जा सकता । कृषि और इससे संबंधित क्रियाकलापों को अर्थव्यवस्था के अन्य सेक्टरों के साथ विकसित करना पड़ेगा । इनसे इस क्षेत्र में आर्थिक विविधीकरण होगा तथा मूल आबादी गाँवों , कृषि - सेवा केंद्रों ( सुविधा गाँवों ) और विपणन केंद्रों ( मंडी कस्बों ) के बीच प्रकार्यात्मक संबंध स्थापित होगा ।

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